Prem Nadi ke Tira
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गीता के सूत्र सनातन हैं. अौर सनातन का स्वभाव है, नदी की धार की तरह. बहते रहना. हमेशा नवीन. सदैव नूतन.
सनातन रखने की इस कला को भारत ने ‘साधना’ का नाम दिया है. ना जाने कितने साधकों की श्रृंखला ने कृष्ण के इन सूत्रों को जीवंत रख, अाज, हम तक पहुँचाया है.
इन पाँच दिनों में हम भी इस श्रृंखला से जुड़, गीता की इस जीवंत नदी में कुछ डुबकी लगायेंगे, अौर कुछ, अपनी उर्जा उड़ेलेंगे!
शिवर में रास तो होगा ही, लीला तो रची ही जायेगी, ध्यान तो साधा ही जायेगा … मगर इन सब के साथ विवेकशील विचार भी होगा. सूत्र गीता के होंगे, अौर अाधार वेदांत होगा.
मन का स्वभाव क्या है, हम इस पर प्रयोग करेंगे.
मस्ती अौर मौन के सहारे, ध्यान सँजोयेंगे … प्रेम नदी के तीरा!
शिविर में अाप सबका स्वागत है. मगर याद रहे: पूरे पाँच दिन, हर सत्र – अनिवार्य.
सुबह 6:30 से, रात 8:00 तक.
पूरी ऊर्जा, पूरी प्यास.
बस अब अापका इंतज़ार है!
अापकी,
दामिनी